Saturday, 20 August 2011

पंछी उड़ते जाते है, वो तो बस उड़ते ही जाते है .........

पंछी उड़ते जाते है, वो तो बस उड़ते ही जाते है                                
जिंदगी की कसौटी पर खरे उतरते जाते है 
मंजिल ऊँची  है उनकी रोक सके ना कोई 
आंधी तूफ़ान सर्दी गर्मी चाहे कैसी भी परिस्थिति होई, 
विषम से विषम परिस्थिति  का हो पाया बस इतना असर, 
रफ़्तार कम हुई ,पर पंछी  की  रही  हमेशा मंजिल पर  नज़र ....
विषम से विषम परिस्थिति का  हो पाया  बस  इतना  असर
रफ्तार  कम हुई पर पंछी की रही हमेशा मंजिल पर नजर ....
मंजिल ऊँची इनकी  आगे  बढ़ते ही  जाते है
नए नए बुलंदियों को छूने की रोज़ उम्मीद लगते है 

हर  परिस्थिति  से  सिखाया  संघर्ष 
आगे बढ़ते ही  गए  स्वीकारकर  हर  परिस्थिति  को  सहर्ष 
अपना  अस्तित्व बनाया इन्होने रखकर सबको साथ 
बढ़ने से रोख ना पाए चाहे दिन हो या रात 
हर पल ने बहुत सिखाया,
हर सीख ने आगे बढाया और परिपक्व  बनाया 
ख्वाब ऊँचे इनके ,आकाश भी नहीं है उनकी सीमा,
मेहनत , लगन, विश्वास की द्रद्ता इतनी की बढ़ेगे आगे चाहे आये कितना पसीना
पंछी उड़ते जाते है, वो तो बस उड़ते ही जाते है
जिंदगी की कसौटी पर खरे उतरते जाते है .......

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