Thursday 14 July 2011

अपने लिए जीना भी क्या जीना..........

अपने लिए जीना भी क्या जीना,
कितना मीठा होता है दूसरे की ख़ुशी का अमृत रस पीना......
ये अमृत वो ही पी पाते है,
जो सबके साथ वक़्त बिताते है,
हँसते है ,हंसाते है, सबके संग गाते है,
मिलते है, मिलाते है, 
दूसरे के गम को अपना गम,
और ख़ुशी को अपनी ख़ुशी समझ पाते है,
सबकी ख़ुशी के लिए किसी भी हद से गुजर जाते है........
जो चक लेते इस अमृत का स्वाद एक बार,
वो चाहता है इससे चखना बारम्बार,
मिलता है इससे आत्म- सुख बेशुमार,
अपने आप से ही होने लगता है प्यार........
प्यार वो चीज़ है मेरे यार,
जिससे दिलो का जुड़ता दिलो से तार,
और मिलने लगता सबका दुलार,
और दुनिया लगती अनमोल संसार........
जितना प्यार बाटोगे,
उससे कहीं अधिक पाओगे,
हर मौसम का लुत्फ उठाओगे,
फूलो की तरह मह्कोगे,
सब दिलो पर छाओगे,
दुनिया में अपनी चमक छोड़ जाओगे.........
अपने लिए जीना भी क्या जीना,
कितना मीठा होता है दूसरे की ख़ुशी का अमृत रस पीना......

1 comment:

  1. very true..kitni sahi baat kitne saral sabdon me likh di...:) -Sachin

    ReplyDelete