Friday, 22 July 2011

विद्या का अभिमान

एक नवशिक्षित शहरी बाबू नदी में नाव पर जा रहे थे. उन्होंने आकाश की ओर ताककर केवट से कहा-भैया! तुम नक्षत्र विद्या जानते हो? केवट बोला- बाबूजी! मैं तो नाम भी नहीं जानता! इस पर बाबू ने हंसकर कहा- तब तो  तुम्हारा चौथाई जीवन व्यर्थ हो गया. कुछ देर बाद बाबू ने फिर पूछा- भाई, गणित तो पढ़े हो? केवट ने कहा- मैं तो नहीं पढ़ा.बाबू बोले-तब तो तुम्हारा आधा जीवन मुफ्त में गया. केवट बेचारा चुप रहा.थोड़ी देर बाद नदी के दोनों ओर पंक्तियों को देखकर बोले- तो भैया! तुम वृक्ष विज्ञान शास्त्र तो जानते होंगे? केवट बोला- बाबूजी! मैं कोई शास्त्र वास्त्र नहीं जानता. नाव खेकर किसी तरह पेट भरता हूँ. बाबूजी हंसकर बोले तब तो भैया! तुम्हारे जीवन का तीन चौथाई हिस्सा बेकार ही बीता.
यही बातचीत चल रही थी की अकस्मात् तेज़ आंधी आ गयी. नाव डगमगाने लगी. देखते ही देखते नाव में पानी भर गया. केवट ने नदी में तैरते हुए पूछा- बाबूजी आप तैरना जानते हैं या नहीं? बाबू ने कहा-तैरना जानता तो मैं भी कूद न पड़ता. भैया !बता, अब क्या होगा? केवट बोला- बाबूजी! अब तो सिवा डूबने के कोई उपाय नहीं है.अब तो भगवान् को याद कीजिये.
भवसागर से तरने की आत्मविद्या ही सच्ची विद्या है.इसे न पढ़कर जो लौकिक विध्याओ के पंडित बनकर अभिमान करते हैं, उन्हें तो डूबना ही पड़ता है. 

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