बढ़ जाये बस मेरी वोट की गिनती है,
आज की राजनीति का है ये नारा,
कुर्सी से ज्यादे ना कोई प्यारा,
दीन, ईमान,मित्रता,भाई- चारा,
इन सबका तो नाम भी मिटा डाला,
वोट बढाने के चक्कर में,इंसान काटे इंसान,
जान बन गयी है अब मुली गाजर सामान......:(
वाह क्या राजनीति है,
बढ़ जाये बस मेरी वोट की गिनती है,
कही बम विस्फोट, कही हत्याखांड,
आतंकवाद का नाम दे मज़े ले रहे नेता,
सब के सामने ऐसे दिखाते, कहकर खामियाजा तो हम देते,
क्या कभी रूपया हो सकता है इंसान की जान समान,
क्या रुपये से वापिस आ सकते हैं ,मरे हुए के प्राण,
क्या रूपये से भर सकती है, किसी विधवा की मांग,
किसी का बेटा,किसी का बाप,क्या है ये सब रूपये समान.......:(
वाह क्या राजनीति है,
बढ़ जाये बस मेरी वोट की गिनती है,
वोट के खातिर रचे जाते है एक से एक षड़यंत्र महान,
मायाचारी, अहंकार, लोभ बन गयी सब नेतायों की शान,
साधु महात्मा का सहारा लेकर,खेले खेल आज के नेता,
क्या शर्म का मतलब सच में भूल गया इंसान,
नैतिकता भूल गया और कर रहा अभिमान,
क्या खुद को समझ रहा भगवान्,
नहीं होता क्या उसका मन परेशान,
कैसे हो सकता है कोई इतना पत्थर सामान !!
ऐसा देख देख कर बस नम हो रही आँखें....:(
सुधर जाओ! सब कुछ देख रहा भगवान्...
अगर नहीं सुधरे तो ऐसा होगा भगवान् का वार,
बंद हो जायेगे तुम्हारे लिए नरक के भी द्वार......
No comments:
Post a Comment