Wednesday, 13 July 2011

कितना स्वार्थी हो गया देखो, कलयुगी इंसान है.....:(

कितना स्वार्थी हो गया देखो,
कलयुगी इंसान है,
कैसे करू अपना उल्लू सीधा
यही रह गया दीन ईमान है,
सोचे, कैसे आऊ उसके करीब,
जिससे पूरे होते अपने अरमान है,
चापलूसी,चमचागिरी में  व्यस्त 
रहता ऐसा इंसान है,
ना अपना कोई अस्तित्व ,
ना ही अपनी पहचान है,
कितना स्वार्थी हो गया देखो,
कलयुगी इंसान है,
खुद मेहनत करने से डरता,
पकी पकाई खा कर खुश रहता,
पता नहीं कैसे इंसान है,
जलन के मारे ही मर जाता,
बुराई भलाई में तत्पर रहता,
झूठी बनाता अपनी शान है,
कितना स्वार्थी हो गया देखो,
कलयुगी इंसान है,
देश की उन्नति में अवरोधक बनता,
भ्रष्टाचार, लड़ाई- झगड़े का जनदाता,
घूसकोरी, धोखादरी के मार्ग पर चलता,
लालच, क्रोध,अज्ञान -ये तीन शब्द
स्वार्थी इंसान की पहचान है,
कितना स्वार्थी हो गया देखो,
कलयुगी इंसान है,
अंत में खुद को अकेला पाता,
निराशावादी हो कर रह जाता,
पतन की तरफ बढता जाता,
अकेलेपन में ही मर जाता,
स्वार्थी चंद दिनों का मेहमान है,
कितना स्वार्थी हो गया देखो,
कलयुगी इंसान है.......

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